आदिवासी जमीन और रोजगार पर टाटा स्टील पर उठे गंभीर सवाल।Garhwa Tak News
रीपोर्ट -परमवीर पात्रों
बिष्टुपुर : जमशेदपुर में टाटा स्टील द्वारा अनुसूचित जनजाति और आदिवासी समाज के लिए आयोजित चार दिवसीय संवाद को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। स्थानीय जमीन मालिकों और उनके वंशजों का आरोप है कि इस संवाद का उद्देश्य केवल दिखावा करना था, असली मुद्दों को दबाने और आदिवासी समाज को बहलाने-फुसलाने का काम किया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्षों पहले टाटा स्टील ने आदिवासियों से उनकी जमीनें अधिग्रहित की थीं, लेकिन आज तक न तो उन्हें उचित सम्मान मिला और न ही उनके जमीनों से जुड़े वंशजों को रोजगार के पर्याप्त अवसर प्रदान किए गए। सवाल उठता है कि आखिर टाटा स्टील के पास वास्तविक रूप से जमीन थी या आदिवासियों से ठगी कर उसे हड़प लिया गया।
जमशेदपुर के आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों का आरोप है कि टाटा स्टील ने जमीन दाताओं या उनके परिवार के लोगों को कंपनी में नौकरी देने की कोई ठोस पहल नहीं की। नतीजतन, जमीन दाताओं और उनके परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति आज भी कमजोर बनी हुई है।
स्थानीय समाजसेवी और भूमि मालिकों ने कहा कि इस तरह के “संवाद” आयोजन सिर्फ दिखावे के लिए हैं, वास्तविक समस्या को छुपाने और समाज को भ्रमित करने के लिए। उनका कहना है कि टाटा स्टील ने आदिवासी समाज के साथ कोई न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे को लेकर उचित पारदर्शिता, रोजगार और सम्मान की गारंटी न दी गई तो भविष्य में आदिवासी समाज में असंतोष और विरोध की लहर बढ़ सकती है। आदिवासी समाज का यह कहना है कि अब सिर्फ बातचीत या “संवाद” से काम नहीं चलेगा, बल्कि ठोस कदम और जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है।